Fertilizer Price Hike: वैश्विक बाजार में फर्टिलाइजर के दामों Fertilizer Price Hike में भारी उछाल और सरकार के ताजा रुख के मद्देनजर घरेलू आयात थम सा गया है। फर्टिलाइजर Fertilizer Price Hike की घरेलू खेती में जरूरतें, बढ़ी कीमतें, अतिरिक्त सब्सिडी की जरूरत समेत अन्य मुद्दों पर सुझाव देने के लिए सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। समिति की सिफारिश के बाद सरकार अपनी दीर्घकालिक नीतियों की घोषणा कर सकती है। आगामी खरीफ सीजन (जून से अक्टूबर) की खेती के लिए जरूरी डीएपी और यूरिया का पर्याप्त स्टाक होने से सरकार फिलहाल किसी तरह की मुश्किल में नहीं है।
रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध के चलते दुनिया भर में उर्वरकों और उसके कच्चे माल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) की आयातित कीमत एक लाख रुपये प्रति टन के स्तर को पार करने लगी हैं। कमोवेश यही हाल यूरिया और पोटाश की भी है।
न्यूटिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत गैर यूरिया वाले फर्टिलाइजरों पर सब्सिडी, उसके मूल्यों का निर्धारण, वैश्विक बाजार की ताजा स्थिति, मांग व आपूर्ति जैसे सभी मुद्दों पर सरकार को सिफारिश देने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है। इस बाबत एक परिपत्र भी जारी किया गया है। 11 सदस्यीय इस समिति में कृषि और फर्टिलाइजर Fertilizer Price Hike मंत्रलय के प्रतिनिधियों समेत कुछ और विशेषज्ञों को भी शामिल किया गया है।
यूरिया और डीएपी का स्टाक पिछले वर्ष से ज्यादा: Fertilizer Price Hike
एक जून से चालू होने वाले खरीफ सीजन 2022 के लिए स्टाक में 25 लाख टन डीएपी है। जबकि पिछले साल यानी वर्ष 2021 की इसी अवधि में डीएपी का यह स्टाक मात्र 14.5 लाख टन था। इसी तरह सरकारी स्टाक में कुल 60 लाख टन यूरिया है, जो पिछले सीजन की इसी अवधि के मुकाबले 10 लाख टन अधिक है। यूरिया और डीएपी समेत अन्य फर्टिलाइजर की आपूर्ति बनाए रखने के लिए भारत कई फर्टिलाइजर उत्पादक देशों के साथ संपर्क में है।
डीएपी की आयातित लागत एक लाख रुपये से अधिक: Fertilizer Price Hike
डीएपी का आयातित मूल्य 1250 डालर प्रति टन के स्तर को छूने लगा है। मुद्रा बाजार में डालर के मुकाबले रुपये के हिसाब से डीएपी की आयातित लागत एक लाख रुपये से अधिक हो गई है। जबकि घरेलू बाजार में डीएपी की खुदरा कीमत 27 हजार रुपये प्रति टन है। फर्टिलाइजर उद्योग को प्रति टन 33 हजार रुपये प्रति टन की सब्सिडी मिलती है। इसे मिलाकर डीएपी से उद्योग को 60 हजार रुपये प्राप्त हो रहा है। इसके हिसाब से आयातित डीएपी की वास्तविक लागत और खुदरा मूल्य में कुल 40 हजार रुपये प्रति टन का अंतर आ रहा है। इस अंतर को पाटने के लिए सरकार की ओर से किए जाने वाले उपायों का इंतजार है। वैश्विक बाजार में यूरिया की कीमतें उस हिसाब से नहीं बढ़ी हैं। जबकि पोटाश की कीमतें सालभर पहले जहां 250 डालर प्रति टन थी वह इस समय बढ़कर 750 डालर प्रति टन तक पहुंच गई हैं।