Swami Vivekananda ने आज ही के दिन 11 सितंबर 1893 को विश्व धर्म संसद को संबोधित किया था, उनके भाषण के ये थी प्रमुख बातें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज शनिवार को स्वामी विवेकानंद और सुब्रमण्यम भारती को याद किया है। सुब्रमण्यम भारती की आज ही 100वीं पुण्यतिथि है और वहीं आज ही के दिन 11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद में ऐतिहासिक भाषण देकर भारत के मान-सम्मान को बढ़ाया था। इस ऐतिहासिक भाषण के दुनिया में आज भी चर्चे होते हैं। आइए जानते हैं स्वामी विवेकानंद के भाषण की प्रमुख बातें क्या थी :
● स्वामी विवेकानंद ने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा था कि मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों, आपने जिस प्यार के साथ में यहां विश्व धर्म संसद में स्वागत किया है, मैं उसका बहुत आभारी हूं। मैं अमेरिका में दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ से आप सभी को धन्यवाद देता हूं। भारत की सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की ओर से मैं यहां आपका आभार व्यक्त करता हूं।
● इसके आगे स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मैं यहां ऐसे वक्ताओं को भी धन्यवाद देना चाहता हूं। उन्होंने यह बताया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार सबसे पहले भारत सहित अन्य पूर्वी देशों से फैला था। स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मुझे गर्व हैं कि मैं उस हिंदू धर्म से हूं, जिसने पूरी दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिकता की सीख दी। भारत की सभ्यता और संस्कृति सभी धर्मों को सच के रूप में मान्यता देती है और स्वीकार करती है।
● स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मुझे गर्व है कि भारत एक ऐसा देश है, जिसने सभी धर्मों और अन्य देशों में सताए हुए लोगों को भी अपने यहां शरण दी। उन्होंने कहा कि हमने अपने दिल में इजराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं, जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली। इसके अलावा भारत ने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है।
● स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण के दौरान कई श्लोकों और गीता के उपदेशों का भी जिक्र किया। अपने भाषण में एक स्थान पर कहा कि ‘जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है, ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगे लेकिन आखिर में सब ईश्वर तक ही जाते हैं। स्वामी विवेकानंद ने गीता के उपदेश का भी जिक्र करते हुए कहा कि ”जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं।”