Mushroom Farming : मशरूम की खेती ने खोला समृद्धि का द्वार, घर बैठे मशरूम की खेती से आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं.

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Mushroom Farming : आज के आधुनिक युग में वैसे तो भारत ने काफी तरक्की कर ली है, लेकिन अपने देश में अभी भी कई पिछड़े इलाकों में महिलाओं को सम्मान पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है. देश में आत्मनिर्भर भारत का अभियान चलाया जा रहा है. इसी अभियान से प्रेरणा लेकर कुछ महिलाएं सफलता की सीढ़ियां चढ़ती है और बाकी महिलाओं के सामने एक मिसाल बनती हैं.

Mushroom Farming : आज के आधुनिक युग में वैसे तो भारत ने काफी तरक्की कर ली है, लेकिन अपने देश में अभी भी कई पिछड़े इलाकों में महिलाओं को सम्मान पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। देश में आत्मनिर्भर भारत का अभियान चलाया जा रहा है। इसी अभियान से प्रेरणा लेकर कुछ महिलाएं सफलता की सीढ़ियां चढ़ती है और बाकी महिलाओं के सामने एक मिसाल बनती हैं।

आज हम बात करेंगे बिहार के वैशाली की महिलाओं की, जो अपनी मेहनत व हौंसले के दम पर घर पर ही मशरुम की खेती करके लाखों रुपये कमा रही हैं व ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इनकी मेहनत का आलम यह है कि अब प्रदेश में आर्थिक रूप से कमजोर सैंकड़ों परिवारों के लिए मशरूम की खेती जीवन यापन का जरिया बन गई है। अब इन परिवारों को कमाई के लिए दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। ये परिवार मशरूम बेचकर ही घर का खर्चा निकाल लेते हैं। तो आईये जानते इन महिलाओं की सफलता की कहानी :

घर में महिलाएं कर रही मशरूम की खेती :

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बिहार के वैशाली जिले के लालगंज में महिलाएं मशरुम की खेती (Mushroom Farming) करके लाखों रुपये का मुनाफा कमा रही हैं। लालगंज के रामपुर बखरा की संगीता कुमारी ने बदहाली से खुशहाली का रास्ता मशरूम के सहारे तय किया। उन्होंने न सिर्फ मशरूम (Mushroom) उगाना सीखा बल्कि उससे नए प्रोडक्ट भी बनाए। इससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हुई। आपको बता दें कि मशरूम में ज्यादा मात्रा में प्रोटीन और पोषक तत्व मौजूद होते हैं। बाजार में इसकी मांग काफी ज्यादा है। इसलिए, मशरूम की खेती से रोजगार के साथ कमाई का अवसर मिलता है।

मशरूम की खेती आर्थिक तंगी से उबारा :


केवीके हरिहरपुर में बतौर मास्टर ट्रेनर काम कर रहीं संगीता के जीवन में एक दौर वह भी था, जब आर्थिक तंगी से जूझ रहीं थीं। तभी उन्हें मशरूम की खेती के बारे में पता चला। शुरुआत में लोग मजाक उड़ाते थे और इसे गोरबछत्ता कहते थे। मगर संगीता ने हार नहीं मानी और गावं की दूसरी महिलाओं को भी इसके फायदे बताए।

इसी का नतीजा है कि विश्व प्रसिद्द सोनपुर मेले में लोंगो ने संगीता के बनाए उत्पाद चॉकलेट, बिस्किट, अचार, बड़ी, सूप आदि को ना सिर्फ सराहा बल्कि करीब 2 लाख रुपये की बिक्री भी हुई. इसमें केवल मशरूम से बने चॉकलेट ही 80,000 रुपये के बिके.

 

हर महीने होती है 40 हजार रुपये तक की कमाई :

संगीता शुरू में घर में ही ऑयस्टर मशरूम उगा रही थीं। बाद में इसका विस्तार किया। उन्होंने अपने मशरूम के ब्रांड को ‘लिच्छवी मशरूम’ नाम दिया। साथ ही अपनी दो बेटियों को भी इस व्यवसाय से जोड़ा है। संगीता मशरूम के उत्पाद से हर महीने 35 से 40 हजार रुपये महीने में कमा लेती हैं। इन्होंने सेल्फ हेल्प ग्रुप (SHG) बनाया है, जिसमें 40 महिलाएं हैं। संगीता जैसी महिलाओं की वजह से आज मशरूम महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है।

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