Karele Ki Kheti : किसान करेले की खेती करके अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं. राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वरीय कृषि वैज्ञानिक डॉ. रविंद्र कुमार तिवारी ने बताया कि करेले में विटामिन और खनिज पदार्थ के साथ-साथ ढेर सारे औषधीय गुण भी पाए जाते हैं, जिससे इसकी मांग हमेशा बनी रहती है.
Karele Ki Kheti : किसान सब्जियों की खेती करके अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं। इसके लिए सरकार की ओर से प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। ऐसे में यदि हाइब्रिड खेती की जाए तो सब्जियों की फसल से काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। आज हम बात करेंगे हाईब्रिड करेले की खेती की। हाईब्रिड करेले की खेती की कुछ ऐसी विशेषताएं है जिससे किसानों को इसकी खेती से काफी अच्छा लाभ हो सकता है। बता दें कि हाईब्रिड प्रजाति की बढ़वार जल्दी होती है और इसका उत्पादन भी बेहतर मिलता है।
क्या हैं हाइब्रिड करेला :
करेले की दो किस्में होती हैं एक देशी और दूसरी हाईब्रिड यानि संकर किस्म। करेले की हाईब्रिड यानि संकर किस्म जल्दी से बढ़ती है और देशी किस्म के मुकाबले जल्दी तैयार हो जाती है। इसमें फलों का आकार सामान्य किस्म के करेले के मुकाबले बड़ा होता है। इसके बाजार में भाव भी अच्छे मिल जाते हैं। इसलिए ज्यादातर किसान हाइब्रिड करेले के बीजों का प्रयोग करते हैं।
करेले की बुवाई का उचित समय :
करेले की खेती केे लिए गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। इसे गर्मी और बारिश दोनों मौसम में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वरीय कृषि वैज्ञानिक डॉ. रविंद्र कुमार तिवारी के अनुसार करेले की फसल को मध्यम गर्म तापमान की आवश्यकता होती है। करेला की खेती साल में दो बार की जा सकती है। सर्दियों वाले करेला की किस्मों की बुआई जनवरी-मार्च की जा सकती है उपज जिसकी मई-जून में मिलती है। वहीं गर्मियों वाली किस्मों की बुआई बरसात के दौरान जून-जुलाई की जाती हैं जिसकी उपज दिसंबर तक प्राप्त होती हैं।
करेले की खेती के लिए जलवायु :
कृषि वैज्ञानिक डॉ. रविंद्र कुमार तिवारी के अनुसार फरवरी व मार्च के महीने में वैज्ञानिक तकनीक से करेले की खेती कर बेहतर उत्पादन और मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। इसकी खेती के लिए अच्छी जल निकास वाली और 6.5 से 7.5 पीएच मान के बीच की मिट्टी काफी उपयुक्त मानी जाती है। करेले की फसल को मध्यम गर्म तापमान की आवश्यकता होती है। इसलिए करेले की खेती करने का उत्तम समय फरवरी और मार्च महीना होता है। इस समय पर फसल लगाने से बेहतर उत्पादन मिलता है।
उन्होंने कहा कि करेले से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु काफी उपयुक्त माना जाता है। फसल की बेहतर बढ़वार के लिए न्यूनतम तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेट और अधिकतम 35 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट के बीच होना चाहिए। उन्होंने कहा कि करेले को जनवरी से मार्च के महीने तक लगाया जा सकता है।
करेले की खेती के लिए मिट्टी :
उन्होंने बताया कि फसल की अच्छी बढ़वार, फूल व फलन के लिए 25 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान अच्छा होता है। बीजों के जमाव के लिए 22 से 25 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान अच्छा होता है। वहीं बात करें इसके लिए उपयुक्त मिट्टी की तो करेले की हाईब्रिड (संकर) बीज की बुवाई के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट या दोमट मिट्टी अच्छी रहती है।
करेले के बीजों की बुवाई का तरीका और दूरी :
किसान करेले की रोपनी बीज और पौधे दोनों विधि से कर सकते हैं। करेले के बीजों को 2 से 3 इंच की गहराई पर बोना चाहिए। वहीं नाली से नाली की दूरी 2 मीटर, पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर तथा नाली की मेढों की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। खेत में 1/5 भाग में नर पैतृक तथा 4/5 भाग में मादा पैतृक की बुआई अलग अलग खंडो में करनी चाहिए। फसल के लिए मजबूत मचान बनाएं और पौधों को उस पर चढ़ाएं जिससे फल खराब नहीं होते हैं।
करेले की खेती में लागत और मुनाफा :
करेले की एक एकड़ में लागत 20-25 हजार रुपए तक आती है। जबकि इससे प्रति एकड़ 50 से 60 क्विंटल की उपज प्राप्त हो सकती है। इसका बाजार में भाव करीब 2 लाख रुपए तक प्राप्त हो जाता है। इस हिसाब से देखें तो करेले की खेती से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
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