बिहार में जमीन अधिग्रहण (Land Acquisition) को लेकर सीएजी (CAG) ने खुलासा करते हुए कहा कि जमीन अधिग्रहण में लंबा वक्त लगने के कारण सरकार को 150 गुना अधिक तक राशि का भुगतान करना पड़ता है.
बिहार में जमीन अधिग्रहण (Land Acquisition) एक बड़ी समस्या रही है. इसके कारण पथ निर्माण की कई योजनाओं के शुरू करने में काफी विलंब होता रहा है. पथ निर्माण विभाग (Road Construction Department) की कई योजनाएं इसी के कारण आज भी अटकी हुई हैं. सीएजी (CAG) ने अपनी रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा किया है. इसमें कहा गया है कि जमीन अधिग्रहण में लंबा समय लगने के कारण जमीन की कीमत 150 गुना तक बढ़ जाती है.
भूमि अधिग्रहण के 7 जिलों को लेकर सीएजी ने जो खुलासा किया है, उसमें 2012 में जो वास्तविक कीमत थी, 2017 में संशोधित कीमत में 150 गुना से अधिक की वृद्धि हो गई. अररिया, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, किशनगंज, मधुबनी, सीतामढ़ी, सुपौल जिलों में 552 किलोमीटर से अधिक की लंबाई में जमीन का अधिग्रहण किया गया.
2012 में जिसकी 868 करोड़ से अधिक की वास्तविक कीमत थी, लेकिन 2017 में इसकी कीमत बढ़कर 2244 करोड़ से अधिक हो गई. जमीन अधिग्रहण करने में हो रहे विलंब के कारण सरकार को 150 प्रतिशत अधिक राशि जो 1375 करोड़ से अधिक का भुगतान करना पड़ा है. 7 जिलों में कुछ इस प्रकार से जमीन का अधिग्रहण करना था जिसकी 2012 में कीमत और 2017 की कीमतों में जमीन आसमान का फर्क आ गया.
बता दें कि जमीन अधिग्रहण नहीं होने के कारण समय पर योजनाओं का पूरा करना भी एक बड़ी चुनौती होता है. कई योजनाएं विलंब होने का बड़ा कारण समय पर जमीन की उपलब्धता संबंधित एजेंसी को नहीं कराना भी रहा है, लेकिन सीएजी ने जिस ओर इशारा किया है उसमें साफ है कि जमीन खरीदने में बिहार में बड़ा खेल हो रहा है और उसके कारण सरकार को बड़ी राशि चुकानी पड़ रही है.