बिहार पंचायत चुनाव की बेला में एक ऐसा मामला आया है, जहां बहू लाने के लिए लड़के वाले उतावले हो गए.आरक्षण के गणित में उलझी सीट पर अपना दावा मजबूत करने के लिए बिना किसी मुहूर्त के मंदिर में शादी रचा ली.
वैसे तो शादी के लिए खूब मशक्कत करनी पड़ती है. लड़के और लड़की के घरवाले एक-दूसरे के चक्कर लगाते हैं. कई बार मिलते हैं, तब जाकर कहीं बात बनती है. इसके बाद पुरोहित वर और वधु के लिए सही तारीख का चयन करते हैं. ताकि भविष्य में किसी प्रकार की समस्या ना हो. लेकिन पंचायत चुनाव की बेला में एक ऐसा मामला आया है, जहां बहू लाने के लिए लड़के वाले उतावले हो गए. आरक्षण के गणित में उलझी सीट पर अपना दावा मजबूत करने के लिए बिना किसी मुहूर्त के मंदिर में शादी रचा ली. अब नई-नवेली दुल्हन ससुराल में आ गई है. बसपा ने उसे अपनी पार्टी से अधिकृत उम्मीदवार भी बना दिया है.
महिला के लिए आरक्षित कर दी गई थी सीट : जानकारी के मुताबिक जौनपुर जिले में खुटहन ब्लाक के उसरौली गांव निवासी पूर्व जिला पंचायत सदस्य सुभाष यादव सरगम की पत्नी आंगनबाड़ी में कार्यरत है. उनकी माता का निधन वर्षों पूर्व हो चुका है. सुभाष यादव सरगम पंचायत चुनाव नजदीक आते ही तैयारी में लग गए. पूरे क्षेत्र में दम खम से प्रचार प्रसार भी शुरू कर दिए. मतदाताओं को साधने में लग गए. तभी दूसरी बार के परसीमन में यह सीट पिछड़ी जाति महिला के लिए आरक्षित कर दी गई.
कर दी बेटे की शादी : इसके बाद सुभाष ने अपनी पत्नी को चुनावी संग्राम में उतारने का विचार किया. इसके लिए उन्होंने अपनी पत्नी को त्याग पत्र दिलाने के बारे में भी सोचने लगे. लेकिन किसी कारण से वह ऐसा नहीं किए. इसके बाद रिश्तेदारों के कहने पर अपने बेटे सौरभ यादव का तत्काल विवाह कर पुत्रवधू को प्रत्याशी बनाए जाने पर विचार शुरू किया. लेकिन इसमें खरमास बांधा बन रहा था. फिर भी उन्होंने बेटे की शादी करने का मन बना लिया.
खरमास में करा दी बेटे की शादी : जैसे ही पड़ोस के गांव में रहने वाले रामचंदर यादव को इस बात की भनक लगी. वो बिना मौका गंवाए सीधे अपनी पुत्री का रिश्ता लेकर सुभाष के घर पहुंच गए. बिना पंडित के ही आनन-फानन में रिश्ता तय कर दिया गया. एक हफ्ते पहले एक मंदिर में वैदिक वैदिक मंत्रोच्चार के साथ विवाह संपन्न करा दिया गया. बेटे की पत्नी के नाम से रविवार को नामांकन दाखिल कर दिया.